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Tuesday, July 31, 2018

आख़िर कोई इंसान पशु से सेक्स क्यों करना चाहता है

human why not do sex with animals
हरियाणा के मेवात इलाक़े में एक गर्भवती बकरी से सेक्स और उसके बाद बकरी की मौत की ख़बर अंतरराष्ट्रीय सुर्खिंयों में है.
मामला 25 जुलाई का है, लेकिन सुर्खियां चार दिनों बाद बनीं. मेवात पुलिस प्रवक्ता जितेंद्र कुमार के मुताबिक़ इस मामले में एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है. पुलिस ने आईपीसी की धारा 377 और एनिमल क्रूएलिटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया है.
मामला जब पुलिस के पास पहुंचा तो बकरी का पोस्टमॉर्टम कराया गया. हालांकि पोस्टमॉर्टम में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है.
पोस्टमॉर्टम में मौत की वजह अंदरूनी चोट बताया गया है. मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है. पुलिस पीआरओ जितेंद्र ने बताया कि अभी मामले की जांच चल रही है.




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लेकिन जानवर के साथ सेक्स...!

जानवरों के साथ सेक्स को अंग्रेज़ी में बेस्टिएलिटी कहते हैं. इसका एक और मतलब भी है अति क्रूर व्यवहार.

ऑक्सफर्ड डिक्शनरी के मुताबिक़, किसी इंसान और जानवर के बीच इंटरकोर्स को बेस्टिएलिटी कहते हैं.
नेशनल सेंटर फॉर बायटेक्नॉलजी इन्फॉरमेशन यानी एनसीबीआई की वेबसाइट के मुताबिक़, किसी इंसान का जानवर के साथ सेक्स करना काफ़ी गंभीर मामला है, लेकिन जानवरों के ख़िलाफ़ हिंसा के जो मामले दर्ज होते हैं, उनमें इस तरह के मामलों का प्रतिशत बहुत कम होता है. भारत में यह एक दंडनीय अपराध है.


मेवातइमेज कॉपीरइटTHINKSTOCK

एनसीबीआई, रिसर्च जरनल में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक बेस्टिएलिटी एक तरह की यौन हिंसा है, जिसमें किसी जानवर का इस्तेमाल यौन संतुष्टि के लिए किया जाता है.
इसका मक़सद सिर्फ़ शारीरिक संतुष्टि है, कोई भावनात्मक लगाव नहीं. एनसीबीआई के मुताबिक कुछ समुदायों में बेस्टिएलिटी को यौन संक्रमित बीमारियों के इलाज के तौर पर देखा जाता है.
दिल्ली स्थित सेक्सोलॉजिस्ट विनोद रैना के मुताबिक़ ऐसे लोग 'सैडिस्ट' प्रवृत्ति के होते हैं. ये पूरी तरह से एक दिमाग़ी मामला है.
बतौर डॉ. रैना बेस्टिएलिटी की दो मुख्य वजहें हो सकती हैं. एक तो यौन कुंठा और दूसरा सेक्शुअल फ़ैंटिसी के लिए.
एक रिपोर्ट के अनुसार, कई बार बच्चे भी इस तरह की हरकतें करते हैं, लेकिन अगर किसी बच्चे के संदर्भ में ऐसा कोई मामला सामने आए तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए.
आगे जाकर ये ख़तरनाक हो सकता है. रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि अक्सर इस तरह के मामलों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, लेकिन ऐसा करना ख़तरनाक हो सकता है.
बतौर डॉ. रैना, "बेस्टिएलिटी के लिए कई बार माहौल भी ज़िम्मेदार होता है. कई बार परिवारों मे सेक्स को लेकर इस तरह का माहौल होता है कि लोग इस पर खुलकर बात भी नहीं कर पाते. ऐसे में कई बार सेक्स को एक्सप्लोर करने के लिए भी लोग जानवरों का इस्तेमाल करते हैं."

लेकिन क्या ये कोई पहला मामला है?

भले ही हरियाणा की इस घटना ने सभी को चौंका दिया है, लेकिन ये कोई पहला मामला नहीं है. अमरीका के उत्तरी-पूर्वी फ्लोरिडा में पशुओं पर होने वाले यौन हमले में बकरियों को सबसे ज़्यादा टारगेट किया जाता है.


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एनसीबी की रिपोर्ट में भी एक ऐसे ही मामले का ज़िक्र किया गया है जिसमें एक 18 साल के युवक ने अपनी गौशाला में पले दो बछड़ों के साथ दुष्कर्म किया. दोनों बछड़ों में से एक की बाद में मौत हो गई. बाद में जब बछड़े की फॉरेंसिक जांच हुई तो ह्यूमन सीमन मिला.
हालांकि जब उस युवक को गिरफ़्तार किया गया तो उसे किसी भी तरह का पछतावा नहीं था.
भारत में ऐसे मामले, आईपीसी की धारा 377 के तहत दर्ज होते हैं. भारत के अलावा कई यूरोपीय देशों जैसे नीदरलैंड, फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड, डेनमार्क में ये प्रतिबंधित है.
इसके अलावा जर्मनी में भी इस पर रोक है. ब्रिटेन में साल 2003 में इससे जुड़ी सज़ा में बदलाव किया गया और आजीवन कारावास की अधिकतम सज़ा को घटाकर दो साल कर दिया गया.
हालांकि हंगरी, फिनलैंड में ये अब भी अपराध नहीं है. साल 2011 में आई डेनमार्क सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 17 फ़ीसदी जानवरों के डॉक्टर मानते हैं कि उन्होंने जितने जानवरों का अब तक इलाज किया, उनमें से कम से कम एक साथ किसी इंसान ने दुष्कर्म किया.

क्या यह कोई मनोविकार है?

एनसीबी की रिपोर्ट की मानें तो इस तरह की समस्या उन लोगों को ख़ासतौर पर होती है जो एक असंतुलित जीवन गुज़ारते हैं.
जिनका बचपन घरेलू हिंसा और तनाव के बीच गुज़रा हो. इसके अलावा जो बचपन में यौन हिंसा का शिकार होते हैं, उनमें भी इस तरह के व्यवहार की आशंका बढ़ जाती है.
साइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रवीण बताते हैं कि अबनॉर्मल सेक्शुअल एक्टिविटीज़ को पैरीफ़िलिया कहते हैं.


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"पैरीफिलिया के कई प्रकार होते हैं. बेस्टिएलिटी इनमें से एक है. बेस्टिएलिटी असामान्य व्यवहार और बीमारी के बीच की चीज़ है. पर इकलौता असामान्य व्यवहार नहीं है. नैक्रोफ़ीलिया इसका दूसरा प्रकार है, जिसमें व्यक्ति किसी मृत के साथ शारीरिक संबंध बनाता है."
क्या हो सकती हैं प्रमुख वजहें?
  • बचपन में बुरा अनुभव
  • अकेलापन
  • मानसिक विकार

क्या है इलाज?

डॉ. प्रवीण के मुताबिक़ इसके लिए अवर्सिव थेरेपी दी जाती थी, लेकिन आज के समय में ये बहुत चलन में नहीं है.
इस थेरेपी में शख़्स को ये महसूस कराया जाता था कि वो किसी जानवर के साथ है, लेकिन इस दौरान उसे करंट दिया जाता था ताकि बाद में अगर वो इस तरह कुछ करे तो उसे वो दर्द याद आए और वो ख़ुद ही उससे दूर हो जाए.
हालांकि अब ये तरीक़ा चलन में नहीं है."ऐसे लोगों के लिए और भी कई तरह के इलाज हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि कोई भी उपाय बहुत कारगर नहीं है."
डॉ. प्रवीण मानते हैं कि इस तरह के मामले बहुत ही कम देखने को आते हैं, लेकिन इसे सिर्फ़ बीमारी नहीं माना जा सकता है.
वो मानते हैं कि ऐसे मामलों में सख़्ती बरतने और ऐसे शख़्स का सही इलाज दोनों साथ-साथ करने से ही फ़ायदा हो सकता है.


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पशुओं के साथ सेक्स करने वाले कैसे-कैसे लोग

  • ह्यूमन-ऐनिमल रोल-प्लेयर्स- जिन्होंने जानवरों के साथ कभी सेक्स नहीं किया है, लेकिन सेक्स की इच्छा भड़कने पर ये जानवरों की तरफ़ रुख़ करते हैं.
  • रोमैंटिक पशु प्रेमी- ऐसे लोग जानवरों को पालतू बनाकर रखते हैं और ये साइकोसेक्शुअली की ओर आकर्षित होने लगते हैं. हालांकि ये सेक्स नहीं करते हैं.
  • असामान्य कल्पनाशील लोग- ये ऐसे लोग हैं जो पशुओ के साथ सेक्शुअल इंटरकोर्स के बारे में सोचते हैं, लेकिन ऐसा कभी करते नहीं.
  • पशुओं से हवस- ऐसे लोग पशुओं को स्पर्श करते हैं. ये पशुओं को गले लगाते हैं और उस तरीक़े से छूते हैं. ये पशुओं के गुप्तांगों को भी छूते हैं, लेकिन सेक्स नहीं करते.
  • अतिउत्साही- ये पशुओं के हर हिस्से को देखते हैं. कई बार ये कामुक नज़रिए से नापते हैं. यहां तक कि पशुओं के बीच होने वाली यौन गतिविधियों के दौरान ये कुछ ज़्यादा ही सक्रिय हो जाते हैं.
  • क्रूर कामुकता- ये पशुओं के साथ रेप करते हैं. इस दौरान उन्हें ये प्रताड़ित भी करते हैं.
  • मौक़ापरस्त- ये सेक्शुअल रिलेशन के मामले में नॉर्मल होते हैं, लेकिन मौक़ा मिलने पर पशुओं के साथ भी शुरू हो जाते हैं.
  • नियमित पशु प्रेमी - ऐसे लोग पशुओं के साथ सेक्स करना ज्यादा पसंद करते हैं. इन्हें मानवीय सेक्स से ज़्यादा ये रास आता है.
  • हिसंक- ये सेक्स के दौरान पशुओं को मार भी देते हैं. यहां तक कि ये पशुओं के मर जाने के बाद भी उनसे सेक्स करते हैं.
  • एक्सक्लूसिव पशु प्रेमी- ऐसे लोग केवल पशुओं के साथ ही सेक्स करते हैं.

Monday, July 30, 2018

Repeated Uttar Pradesh Why PM Modi? बार-बार उत्तर प्रदेश क्यों आ रहे हैं पीएम मोदी?

बार-बार उत्तर प्रदेश क्यों आ रहे हैं पीएम मोदी?
Post Write By-UpendraArya

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को लखनऊ का दो दिवसीय दौरा पूरा किया. इससे ठीक पहले वो पांच दिवसीय विदेश यात्रा से लौटे थे.
पिछले एक महीने में मोदी कुल पांच बार उत्तर प्रदेश की यात्रा कर चुके हैं. प्रधानमंत्री वाराणसी से ही सांसद भी हैं लेकिन आगामी  चुनाव और उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन की संभावना के चलते उनके दौरों के राजनीतिक मायने न निकाले जाएं, ऐसा संभव नहीं.
हालांकि इसके पहले भी उनके यूपी के लगातार दौरे होते रहे हैं लेकिन 28 जून को मगहर से शुरू हुआ यूपी यात्रा का क्रम नोएडा, बनारस, मिर्ज़ापुर, शाहजहांपुर और अब दो दिन में लगातार दो बार लखनऊ आकर थमा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथइमेज कॉपीरइट@NARENDRAMODI/TWITTER

चुनाव के मूड में मोदी!

बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में हर महीने प्रधानमंत्री की कम से कम एक या दो सभाएं यूपी में होंगी. जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री की इन यात्राओं ने ये साबित कर दिया है कि लोकसभा चुनाव अभी भले दूर हों लेकिन वो चुनावी मूड में आ गए हैं.
प्रधानमंत्री की इन यात्राओं का मक़सद भले ही संतों की समाधि पर जाना या फिर परियोजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास करना रहा हो, लेकिन उनके भाषणों में चुनावी भाषणों का तेवर साफ़ दिखाई देता है. मगहर से लेकर लखनऊ तक में उन्होंने कोई ऐसी सभा नहीं की जिसमें कांग्रेस, सपा और बसपा को और पूर्व में रहीं उनकी सरकारों को आड़े हाथों न लिया हो.
हालांकि भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री की बार-बार हो रही इन यात्राओं को राजनीति से जोड़कर नहीं देखती. पार्टी प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी कहते हैं, "यूपी ने बीजेपी को और प्रधानमंत्री को बहुत कुछ दिया है, यहां की जनता उन्हें बार-बार बुलाती है, उनको यहां से लगाव है, इसलिए अक़्सर आते हैं. इसमें राजनीति देखना ठीक नहीं है."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइकइमेज कॉपीरइटSAMIRATMAJ MISHRA

विपक्षी गठबंधन ने पेश की चुनौती

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें मिली थीं और दो सीटों पर उसकी सहयोगी अपना दल ने चुनाव जीता था.
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला था लेकिन उसके बाद हुए तीन लोकसभा उपचुनावों में पार्टी की ज़बर्दस्त हार हुई और इस हार के पीछे सपा-बसपा गठबंधन मुख्य वजह रही है.
वहीं अब इस गठबंधन में कांग्रेस के भी शामिल होने की पूरी संभावना है और जानकारों के मुताबिक गठबंधन की स्थिति में बीजेपी के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान प्रधानमंत्री की लगातार यात्राओं को इसी से जोड़कर देखते हैं, "यूपी में बीजेपी और नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. उन्हें आगामी चुनाव में 71 सीटें तो वैसे भी नहीं मिलने वाली हैं लेकिन यदि 71 से ये आंकड़ा 30-35 पर भी आ गया तो इनके लिए मुसीबत हो जाएगी. गठबंधन होने की स्थिति में यही होने की पूरी आशंका है. इसलिए प्रधानमंत्री ख़ुद को बार-बार यूपी का दिखाने की कोशिश कर रहे हैं."
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मोदी के भरोसे बीजेपी

शनिवार और रविवार की दो दिवसीय लखनऊ यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी लखनऊ में रुके नहीं बल्कि वापस दिल्ली चले गए और अगले दिन फिर लखनऊ आए.
हालांकि बताया गया कि पहले उनका लखनऊ में ही रुकने का कार्यक्रम था लेकिन बाद में ये बदल दिया गया.
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता अखिलेश सिंह ने प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम पर ये कहकर चुटकी ली कि 'उन्हें पता है कि यूपी में ज़्यादा समय देने से कुछ नहीं मिलने वाला.'
प्रधानमंत्री यूपी में भले ही एक महीने के भीतर छह बार आए हों लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे चुनावी राज्यों में भी उनकी ये सक्रियता नहीं दिख रही है. राजनीतिक पर्यवेक्षक इसके पीछे महागठबंधन की संभावना के अलावा उत्तर प्रदेश के राजनीतिक महत्व और बीजेपी में विकल्पहीनता को देखते हैं.
शरत प्रधान कहते हैं कि बीजेपी में नरेंद्र मोदी ऐसे वटवृक्ष की तरह स्थापित हो गए हैं जिसके नीचे दूसरा कोई आगे बढ़ ही नहीं सकता है. उनके मुताबिक, यही बीजेपी के लिए फ़ायदे वाली भी बात है और नुक़सान वाली भी.
नरेंद्र मोदी के समर्थकइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

वोटरों को साधने की कोशिश

पिछले एक महीने के भीतर नरेंद्र मोदी के यूपी दौरों पर एक नज़र डालें तो ये सभी कार्यक्रम प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में हुए हैं और इनके ज़रिए उन्होंने आधी से ज़्यादा लोकसभा सीटों को कवर कर लिया है.
यही नहीं, इन यात्राओं के ज़रिए जातीय समीकरणों को भी साधने की ज़बर्दस्त कोशिश की गई है और सरकार की विकास की छवि को गढ़ने और उसे लोगों तक पहुंचाने का भी भरसक प्रयास हो रहा है.
मगहर में मोदी ने जहां दलितों और पिछड़ों को साधने की कोशिश की तो उसके बाद नोएडा में सैमसंग कंपनी का उद्घाटन किया और सरकार की विकास की छवि को पुख़्ता करने की कोशिश की. ये अलग बात है कि इस कंपनी की शुरुआत भी दूसरी योजनाओं की तरह पिछली सरकारों के ही समय में हुई थी.
आज़मगढ़ और मिर्ज़ापुर के ज़रिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पुराने गढ़ में अपनी पैठ बनाने की कोशिश हुई तो शाहजहांपुर से सीधे समाजवादी परिवार यानी मुलायम-अखिलेश के गढ़ को चुनौती दी गई.
मायावती और अखिलेश यादवइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES/SAMAJWADI PARTY

उपचुनावों ने दिया संकेत

चूंकि पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी-रायबरेली के अलावा इटावा-मैनपुरी का यही इलाक़ा था जहां की चार सीटें बीजेपी के हाथ से निकल गई थीं.
जानकारों का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को क़रीब 42 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन यदि सपा-बसपा-कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो ये बीजेपी से क़रीब आठ प्रतिशत ज़्यादा बैठता है.
वोटों का ये प्रतिशत निश्चित तौर पर सीटों में भी बदलाव लाएगा, ये उपचुनावों से साफ़ हो चुका है.
शरत प्रधान कहते हैं कि ज़ाहिर है, ऐसी स्थिति में पार्टी अपने एकमात्र प्रचारक को लगातार यूपी के दौरे कराती रहेगी ताकि वो हर क़ीमत पर महागठबंधन से लड़ने की स्थिति में रहे.
अखिलेश यादव और राहुल गांधीइमेज कॉपीरइटREUTERS

चुनाव तक इंतज़ार

वहीं दूसरी ओर गठबंधन की स्थिति भी अभी तक स्पष्ट नहीं है.
बताया जा रहा है कि गठबंधन का स्वरूप तो तय हो चुका है लेकिन इसमें शामिल दल रणनीति के तहत इसका एलान अभी नहीं कर रहे हैं. बहुजन समाज पार्टी के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "सीट बँटवारे का नब्बे प्रतिशत काम हो चुका है लेकिन इसकी घोषणा चुनाव की घोषणा से पहले नहीं होगी. गठबंधन में शामिल पार्टियों को भी ये संकेत दे दिया गया है कि कहां उन्हें लड़ना है और कहां लड़ाना है."
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान भी मानते हैं कि गठबंधन में शामिल पार्टियां रणनीति के तहत इन बातों को सार्वजनिक नहीं कर रही हैं लेकिन उनके मुताबिक इसके पीछे कुछ और भी कारण हैं, "सपा और बसपा को पता है कि गठबंधन को पर्दे के पीछे रखने में ही अभी भलाई है, अन्यथा उनका भी वही हश्र होगा जो लालू यादव का हुआ. मायावती और मुलायम परिवार के ख़िलाफ़ सीबीआई के पास पर्याप्त सबूत हैं और पिछली सरकार के समय भी इसे लटकाए रखा गया और अभी भी ये मामला अधर में है. तब भी ये इन दलों को कब्ज़े में रखने का हथियार था और आज भी है."
शरत प्रधान कहते हैं कि गठबंधन का एलान शायद तभी हो जब सरकार सीबीआई का इस्तेमाल करने की स्थिति में न हो यानी चुनाव की घोषणा के बाद. बहरहाल, चुनाव अभी दूर हैं और प्रधानमंत्री की हर महीने यूपी में कम से कम एक-दो सभाएं होनी ही हैं.
जानकारों का कहना है कि बीजेपी के लिए यूपी में महागठबंधन तो चुनौती है ही, ज़्यादा यात्राओं के ज़रिए प्रधानमंत्री को यूपी में समेट देना भी विपक्ष की रणनीतिक जीत और बीजेपी की मनोवैज्ञानिक पराजय जैसा साबित होगा.
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Thursday, July 26, 2018

आज 27 जुलाई को चंद्रग्रहण के साथ एक और दुर्लभ खगोलीय घटना की होगी शुरुआत


रात में आकाश को निहारने में रुचि रखनेवालों को 27 जुलाई को दो दुर्लभ खगोलीय घटनाएं देखने को मिल सकती हैं। एक तरफ दुनिया भर में लोग सदी के सबसे लंबी अवधि के पूर्ण चंद्रग्रहण का इंतजार कर रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हें इसी तरह की एक अन्य दुर्लभ खगोलीय घटना भी देखने को मिल सकती है।
शुक्रवार, 27 जुलाई को भारतीय मानक समय के अनुसार रात पौने ग्यारह बजे उपछाया क्षेत्र (पेनंब्रा) में चंद्रमा के प्रवेश के साथ चंद्रग्रहण की शुरुआत होगी। इसके ठीक पांच मिनट पहले मंगल ग्रह सामान्य से अधिक चमकदार और बड़ा दिखाई देगा। इस दौरान मंगल ग्रह ऐसी स्थिति में होगा, जिसे खगोल विज्ञान में विमुखता (Opposition) कहते हैं।

विमुखता उस स्थिति को कहते हैं, जब मंगल अपनी कक्षा में घूमते हुए पृथ्वी के बेहद नजदीक होता है। इस दौरान सूर्य, पृथ्वी और मंगल लगभग सीधी रेखा में होंगे। पृथ्वी और मंगल दोनों ही इस स्थिति में सूर्य के एक ओर ही होते हैं। ऐसे में मंगल, जिसे लाल ग्रह भी कहते हैं, सामान्य से अधिक चमकदार और बड़ा दिखाई देता है।
मंगल की विमुखता की शुरुआत 27 जुलाई को हो जाएगी, पर लाल ग्रह पृथ्वी के सबसे अधिक करीब 31 जुलाई के दिन होगा। सूर्य के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रहों की कक्षा का वृत्ताकार न होकर अंडाकार होना इसकी प्रमुख वजह होती है। यही कारण है कि विमुखता की विभिन्न स्थितियों के दौरान मंगल और पृथ्वी के बीच की दूरी भी अलग-अलग होती है।
पृथ्वी से मंगल की दूरी का यह दायरा 400 मिलियन किलोमीटर (2.7 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट) से लेकर 56 मिलियन किलोमीटर (0.38 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट) के बीच होता है। मंगल की पृथ्वी से सबसे अधिक नजदीकी विमुखता के दौरान होती है। इस बार मंगल पिछले 15 वर्षों में पृथ्वी के सबसे अधिक करीब होगा। यही कारण है कि पिछले पंद्रह वर्षों की अपेक्षा यह अधिक चमकीला और बड़ा भी दिखाई देगा।

वैज्ञानिकों के अनुसार, शुक्रवार को पृथ्वी से मंगल की दूरी महज 58 मिलियन किलोमीटर (0.39एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट) होगी। तकनीकी भाषा में समझें तो मंगल का कोणीय व्यास पृथ्वी से देखने पर 24 मिनट से अधिक होगा और यह -2.75 मैग्नीट्यूड से अधिक चमकदार होगा। इसकी तुलना अगर आकाश में सबसे अधिक चमकीले तारे सिरिस से करें तो वह भी इस दौरान मंगल के मुकाबले तीन गुना धुंधला दिखाई देगा।
यह आकाशीय घटना खगोल विज्ञानियों के लिए एक अद्भुत अवसर की तरह होगी क्योंकि इस दौरान उन्हें टेलीस्कोप के जरिये मंगल के बारे में जानने का मौका मिल सकता है। हालांकि, नंगी आंखों से आकाश को देखने वाले सामान्य लोगों के लिए लाल ग्रह को देखना आसान नहीं होगा क्योंकि पृथ्वी के बेहद करीब होने के बावजूद वह एक छोटे कण की तरह ही दिखाई देगा। हालांकि, ग्रहण के दौरान लाल रंग के चंद्रमा के बगल में इसे देखने का एक रोमांचक अवसर होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रहण के दौरान चांद के 6 डिग्री दक्षिण में मंगल को देखा जा सकता है।
सोशल मीडिया समेत अन्य कई प्लेटफॉर्म्स पर यह बताया जा रहा है कि आज के दिन मंगल चांद जितना बड़ा दिखेगा। जबकि, इस बात में सच्चाई नहीं है।

ISRO bought the technology for space solar cells from US | सरो ने अमेरिका से खरीदी स्पेस सोलर सेल तकनीक, बचेंगे करोड़ों रुपये

सरो ने अमेरिका से खरीदी स्पेस सोलर सेल तकनीक, बचेंगे करोड़ों रुपये



भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मोदी सरकार की मेक इन इंडिया योजना की तरफ एक और कदम बढ़ाते हुए अमेरिका से स्पेस सोलर सेल्स की तकनीक खरीदी है। अब भारत में ही इस तकनीक की मदद ले सोलर सेल बनाए जाएंगे। यह सोलर सेल स्पेस में सैटेलाइट को पावर देने का काम करेंगे। ताकि वह अपना काम अच्छे से कर सकें।

इसरो के चेयरमैन के. सिवान का कहना है कि अभी तक सैटेलाइट्स में लगाने के लिए यूएस की प्राइवेट कंपनियों से सोलर सेल्स खरीदे जाते थे। यह एक बहुत ही कठिन तकनीक है और इसे निर्यात करना काफी महंगा पड़ता था। उन्होंने कहा कि सोलर सेल्स के लिए अभी तक हमें यूएस पर ही निर्भर रहना पड़ता था। इसके अलावा कुछ प्रतिबंध भी थे, जैसे कि हम अधिक सेल्स नहीं ले सकते। अगर किसी दिन ऐसा हो जाता कि सोलर सेल्स के निर्यात पर ही रोक लग जाती तो सैटेलाइट प्रोग्राम थम सकता था। इसी वजह से इस तकनीक को खरीदने का फैसला किया गया। ताकि अपने ही देश में सोलर सेल्स बनाए जा सकें।  

करोड़ों रुपये होते थे खर्च

सिवान ने आगे बताया कि 10 हजार सोलर सेल के लिए 15 करोड़ रुपये तक का खर्चा आता था। यदि इन सेल्स की मात्रा की बात की जाए तो छोटी सैटेलाइट के लिए 1500 और बड़ी सैटेलाइट के लिए 10-15 हजार सेल्स का इस्तेमाल होता है। अगर ये देश में ही बनने शुरू हो जाएंगे तो इनकी कीमत कई गुना तक कम हो जाएगी।  

ये कंपनी बनाएगी सेल्स

सेल्स को बनाने के सवाल पर सिवान का कहना है कि इन्हें बनाने का कॉन्ट्रैक्ट भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को दिया गया है। यह कंपनी वैज्ञानिकों की देखरेख में बंगलूरू में सेल्स बनाएगी। बता दें यदि यह सेल्स न हों तो सैटेलाइट स्पेस में किसी काम की नहीं रहती। जब सैटेलाइट स्पेस में पहुंचती है तो दो सोलर पैनल विंग्स ओपन हो जाते हैं और इन पर मौजूद सोलर सेल सूरज की रौशनी से पावर जेनरेट कर सैटेलाइट तक पहुंचाते हैं।

Wednesday, July 25, 2018

The 'lake' of liquid water found on Mars, how much life is expected. | मंगल ग्रह पर मिली तरल जल की 'झील', जीवन की उम्मीद कितनी?

शोधकर्ताओं को मंगल ग्रह पर तरल पानी के अस्तित्व का पता चला है.
उनका मानना है कि मंगल पर मिला पानी दक्षिणी ध्रुवीय बर्फ़ीले इलाके में एक झील के रूप में है जो क़रीब 20 किलोमीटर इलाक़े में फैली है और जो बर्फ़ीली सतह से क़रीब एक किलोमीटर नीचे मौजूद है.
पहले के शोध में मंगल के धरातल पर तरल जल के संभावित चिन्ह मिले थे, लेकिन ये जल के पाए जाने का पहला ऐसा प्रमाण है जो वर्तमान में मौजूद है.
नासा के क्यूरियोसिटी रोवर ने जिन झीलों के तल का पता लगाया था उनसे पता चलता है कि अतीत में मंगल की सतह पर पानी मौजूद रहा होगा.
मंगलइमेज कॉपीरइटNASA/JPL/MALIN SPACE SCIENCE SYSTEMS
हालांकि क्षीण वायुमंडल की वजह से मंगल की जलवायु पहले के मुकाबले ठंडी हुई है जिससे परिणामस्वरूप यहां मौजूद जल बर्फ़ में बदल गया है ये नई खोज मार्सिस की मदद से संभव हो सकी है. मार्सिस मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर पर मौजूद एक राडार उपकरण है.
अध्ययन का नेतृत्व करनेवाले इटैलियन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफ़िज़िक्स के प्रोफ़ेसर रोबर्टो ओरोसेई ने कहा कि ये "संभवत: एक बहुत बड़ी झील हो सकती है."
मंगल ग्रहइमेज कॉपीरइटSCIENCE PHOTO LIBRARY
हालांकि मार्सिस ये पता नहीं लगा सका कि तरल जल की गहराई कितनी है. लेकिन शोध दल का अनुमान है कि ये कम से कम एक मीटर हो सकती है.
प्रोफ़ेसर ओरोसेई कहते हैं, "जो कुछ मिला है वो जल ही है. ये एक झील की तरह है, वैसा नहीं जैसा कि पिघली हुई बर्फ़ चट्टान और बर्फ़ के बीच भरी होती है."

जीवन की संभावना के लिए इस खोज का महत्व?

मंगल पर हुई इस ताज़ा खोज से जीवन की संभावनाओं के बारे में निश्चित तौर पर फ़िलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता.
ओपन यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉक्टर मनीष पटेल इसे समझाते हैं, "हम लंबे अरसे से जानते रहे हैं कि मंगल ग्रह की सतह पर जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियां नहीं हैं. लेकिन अब हमारी खोज थोड़ी आगे बढ़ सकी है."
पानी की स्थिति ऐस्ट्रोबायोलॉजी में बेहद महत्वपूर्ण है. इस क्षेत्र में धरती के अलावा जीवन की संभावनाओं के बारे में अध्ययन किया जाता है.
नई खोज से ये तो पता चलता है कि मंगल पर पानी मौजूद है, लेकिन इतने से जीवन की संभावनाओं के बारे में निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता.
मंगल ग्रहइमेज कॉपीरइटESA/INAF
डॉक्टर पटेल कहते हैं, "हम जीवन की संभावना के क़रीब नहीं पहुंचे हैं. लेकिन इस खोज से ये पता चलता है कि हमें मंगल पर कहां और किस दिशा में आगे बढ़ना है. ये छुपे हुए ख़ज़ाने के नक्शे की तरह है."

अब आगे क्या होगा?

तरल तल की मौजूदगी संबंधी खोज उन शोधार्थियों के लिए एक अच्छा मौक़ा है जो मंगल पर अतीत और वर्तमान में जीवन की संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं.
हालांकि खोजी गई झील का अभी और गहन अध्ययन किया जाएगा तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा.